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अतिथि

  • vitastavimarsh1
  • Apr 21
  • 1 min read

Updated: Apr 27

सुबह - सुबह सहमते हुए

मैंने उनके घर की कॉल बेल बजायी

अपराधी की तरह मैं खड़ा था दरवाजे के बाहर

किवार को पकड़े वह भी खड़े थे हतप्रभ

मेरे हाथ में बैग मिनटों तक लटका रहा

हालचाल पूछने के बजाय

हवा में तिरने लगा एक वाक्य

धीमी गति की गेंद की तरह -


आने के पहले  फोन तो कर लिया होता एक बार

मैं तो पहले ही आउटर पर खड़ा था किंकर्तव्यविमूढ़

समझ गया सिग्नल का गूढ़ अर्थ

मैंने घर लौटकर शब्दकोश को पलट कर देखा

सोचा कुछ शब्द आखिरी साँस ले रहे हैं

और दे रहे हैं नये शब्द - शिशुओं को असमय में जन्म

अब शब्दों का जन्म – मरण,हर्ष - विषाद का विषय नहीं है।

 
 
 

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website: www.vitasta-vimarsh.com

ईमेल- vitastavimarsh1@gmail.com

प्रकाशक : मुदस्सिर अहमद भट्ट 

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ईमेल- mudasirhindi@gmail

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