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तलाशी (लघुकथा)

  • vitastavimarsh1
  • Apr 27
  • 1 min read

फोज़िया शेख़

२५ जनवरी की सर्द रात थी। लगभग नौ सवा नौ का समय हो रहा था। अमी, अबू, दादी अमी और घर की तीन बच्चियां सोने की तैयारी कर ही रहे थे कि बाहर से ज़ोर- ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई।

कुछ पल के लिए सब डर गए। लेकिन फिर अबू दरवाज़ा खोलने उठे और अमी खिड़की से झांकने लगी और देखा कि कुछ आर्मी वालों की टोली २६ जनवारी के सिलसिले में घर के अंदर तलाशी करने आ रही है।

सहमी हुई अमी सीधा किचन में गई। लाल मिर्च का डब्बा और तेज़ धार का चाकू ले आई और तीनो बेटियों को थमा के बोली छत पे जाके कहीं छुप जाओ।

आर्मी वाले सब से पहले बैठक में तलाशी करने आए, जूंही  बूढ़ी दादी को देखा, उनके पैर छू लिए और बिना तलाशी किए लौट गए।

फोज़िया शेख़

शोधार्थी

इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी

अवंतीपोरा, जम्मू और कश्मीर

 
 
 

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